
साहित्य विमर्श प्रकाशन
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हालात बद से बद्तर होते जा रहे थे। अपराधियों का हर कदम कामयाबी की नई गाथा लिख रहा था, तो वहीं सुरक्षा एजेंसियाँ निरंतर हार का मुँह देख रही थीं। पनौती और सतपाल उन दो पाटों के बीच पिस रहे थे। षड़्यंत्रकारी उनकी लाश गिराने को दृढ़संकल्पित थे तो एनआईए उनपर यकीन करने को तैयार नहीं थी। पनौती मामले की तह तक पहुँचने की जिद पकड़े बैठा था तो सतपाल किसी भी हाल में उसका साथ नहीं छोड़ना चाहता था। मगर उनकी राह आसान तो बिल्कुल भी नहीं थी, क्योंकि इस बार उन्हें किसी कातिल को नहीं खोजना था, बल्कि मुकाबला ऐसे लोगों से था जो देश के पीएम और प्रेसिडेंट को खत्म करने की धमकी जारी कर चुके थे। बात वहाँ तक भी सीमित रह जाती तो शायद दोनों के लिए कुछ कर गुजरना आसान हो जाता, मगर दुश्मन के चक्रव्यूह को बेध पाना उस वक्त मुश्किल हो उठा जब उसने संजना को अपना मोहरा बना लिया। फिर हालात ने कुछ ऐसी करवट बदली कि उन तीनों के साथ-साथ अवनी को भी उस दावानल में कूद जाना पड़ा, जो सबकुछ जलाकर भस्म कर देने वाली थी। अब या तो चारों मिलकर दुश्मन के चक्रव्यूह को तोड़ने में कामयाब हो जाते, या उसमें फँसकर अपनी जान गवाँ बैठते, क्योंकि मरो या मारो के अलावा उनके पास और कोई रास्ता नहीं बचा था।
Weight | 300 g |
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Dimensions | 21 × 14 × 3 cm |
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