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44 Saal Ke Baad
पढ़ने, संगीत, निजी संस्थान में नौकरी, पारिवारिक, सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाने के पश्चात, बचे समय में कुछ लिखने वाले, मूल रूप से उत्तराखंड के, और पिछले ढाई दशकों से दिल्ली राजधानी क्षेत्र में रह रहे गाजियाबाद निवासी, पराग डिमरी की ये छठी पुस्तक है। डेढ़ साल से कुछ ही ज्यादा के अंतराल में, ये उनकी चौथी प्रकाशित रचना है। पूर्व प्रमुख प्रकाशित रचनाएं संगीतकार ओ पी नैय्यर की जीवन गाथा, छोटे से शहर कोटद्वार में गुजरे बचपन, लडकपन की कहानी, और महानगर की जीवन शैली का सुख, उसके साइड इफेक्टस भोगने, सहने के बाद, एक छोटी सी, अलग थलग जगह के वासी बन जाने की, कथाएं रही हैं। प्रस्तुत रचना “चवालीस साल के बाद” एक ऐसी प्रेम कहानी है, जो साढ़े चार दशकों के अलगाव के बाद भी खत्म, विलुप्त नहीं हो पाती, कुछ किंतु, परंतु के साथ, महक वाली ही बनी रहती है, जो इसके पाठकों को भी महकाती रहती है।
पराग डिमरी, वर्तमान में गाजियाबाद वासी।स्मृतियों में अभी भी बचपन के उत्तराखंड प्रदेश के छोटे से शहर कोटद्वार में ही अपनी जड़ों को महसूस करते हैं।जीविका के लिए दिल्ली स्थित एक निजी संस्थान में विपणन और व्यवसाय वृद्धि विभाग में कार्यरत।रोजगार के निर्वहन के अतिरिक्त काफी पढ़ना, कभी लिखना और मधुर संगीत को सुनना, बस इसके इर्द-गिर्द ही जीवन को सीमित कर रखा है।
इस पुस्तक के लिए भी एक फिल्मी गीत की पंक्ति को उद्धृत करते रहते हैं:-…कोई अपनी पलकों पर यादों के दिए रखता है…
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