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जन्म- 24 अक्तूबर, 1894 ई., घोषपाड़ा-मुरतीपुर गाँव, अब नदिया जिला, प. बँगाल देहावसान- 1 नवम्बर, 1950 ई., घाटशिला, अब झारखण्ड

पुरस्कार- रवीन्द्र पुरस्कार (मरणोपरान्त), 1951

सहधर्मिणी- गौरी देवी (जिनका देहान्त कॉलेरा से हो गया था) और रमा चट्टोपाध्याय

शुरुआती जीवन

विभूतिभूषण वन्द्योपाध्याय का जन्म उनके ननिहाल में हुआ था और उनका बचपन बैरकपुर में बीता, जहाँ उनके परदादा बशीरहाट से आकर बस गये थे। उनके पिता महानन्द वन्द्योपाध्याय संस्कृत के विद्वान थे और पेशे से कथावाचक थे। उनकी माता मृणालिनी देवी थीं। पाँच भाई-बहनों में विभूतिभूषण सबसे बड़े थे।

एक मेधावी छात्र के रुप में उन्होंने बनगाँव हाई स्कूल से एण्ट्रेन्स एवं इण्टर की पढ़ाई की; सुरेन्द्रनाथ कॉलेज (तत्कालीन रिपन कॉलेज) से स्नातक बने, मगर कोलकाता विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की पढ़ाई वे अर्थाभाव के कारण पूरी नहीं कर पाये और जंगीपाड़ा (हुगली) में वे शिक्षण के पेशे से जुड़ गये। आजीविका एवं परिवार की जिम्मेवारी निभाने के लिए वे और भी कई पेशों से जुड़े रहे।

लेखन- विभूतिभूषण वन्द्योपाध्याय के रचना-संसार की पृष्ठभूमि बँगाल का ग्राम्य-जीवन रहा है, वहीं से उन्होंने सारे पात्र लिये हैं। उन दिनों ‘प्रवासी’ बँगाल की प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका हुआ करती थी, जिसमें उनकी पहली कहानी ‘उपेक्षिता’ सन् 1921 ईस्वी में प्रकाशित हुई। 1925 में भागलपुर (बिहार) में कार्यरत रहने के दौरान उन्होंने ‘पथेर पाँचाली’ लिखना शुरु किया, जो 1928 में पूरा हुआ। उसी वर्ष यह रचना ‘प्रवासी’ में धारावाहिक रुप से प्रकाशित हुई और उन्हें प्रसिद्धि मिलनी शुरु हो गयी। अगले साल यह रचना पुस्तक के रुप में प्रकाशित हुई। आज बँगला साहित्य में शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय के बाद उन्हीं का स्थान माना जाता है।

रचना-संसार- अपराजिता (1931), मेघमल्हार (1931), मयुरीफूल (1932), यात्राबादल (1934), चाँदेर पाहाड़ (चाँद का पहाड़) (1937), किन्नरदल (1938), अरण्यक (1939), आदर्श हिन्दू होटल (1940), मरणेर डंका बाजे (1940), स्मृतिर रेखा (1941), देवयान (1944), हीरा-माणिक ज्वले (1946), उत्कर्ण (1946), हे अरण्य कथा कह (1948), इच्छामति (1950), अशनि संकेत , विपिनेर संसार, पथ चेये, दुई बाड़ी, अनुवर्तन, आह्वान, तृणांकुर, दृष्टि प्रदीप, मिसमिदेर कवच, अभियात्रिक, इत्यादि।

सत्यजीत राय ने वर्ष 1955 में ‘पथेर पाँचाली’ (रास्ते का गीत) पर विश्वप्रसिद्ध फिल्म बनायी थी। बाद में ‘अपराजिता’ और ‘अपुर संसार’ (अपु का संसार) फिल्में बनाकर उन्होंने “अपु त्रयी” (Apu Trilogy) को सफलतापूर्वक पूरा किया।

पटकथा लेखन के विद्यार्थियों से सत्यजीत राय ने निम्न कथन लेखक विभूतिभूषण वन्द्योपाध्याय की प्रशंसा में कहे थेः “उनकी पंक्तियाँ चरित्र पर इस तरह सटीक बैठती हैं कि भले ही उन्होंने किसी चरित्र का चरित्र-चित्रण न कर रखा हो; फिर भी, चरित्र द्वारा कही गयी बातों से उसका एक सजीव रुप उभर कर सामने आ जाता है।”