बनकिस्सा यानी की इस पुस्तक के पहले भाग को पढ़ने के बाद मैं ये निश्चित रूप से कह सकता हूँ कि ये किताब हर एक पुस्तक प्रेमी के संकलन में जरुर होनी चाहिए..|
Rated 5 out of 5
Gaurav pathak –
किताब नही बल्कि जंगल की जिंदगी है❤️❤️
Rated 5 out of 5
Atul sharma –
प्रकृति को जानने और समझने के लिए सबसे बेहतरीन स्थल
Rated 4 out of 5
सिद्धार्थ अरोड़ा ‘सहर’ –
इस किताब में यूँ तो अलग अलग कई कहानियां हैं लेकिन पढ़ते पढ़ते महसूस होगा कि ये कहानियाँ अलग नहीं, एक छोर से निकली हैं और हर बार, नई से नई जगह ले जाने का माद्दा रखती हैं।
Rated 5 out of 5
Sachin Mishra –
सुनील कुमार सिंकरेटिक एक नई विधा इजाद कर रहे हैं जिसे हम कुछ पंचतंत्र के श्रेणी में कुछ वन्य जीवन के ज्ञान के बारे में और कुछ कहानी की श्रेणी में रखते हुए एक नई पुस्तक शाखा का नाम दे सकते हैं.
सुनील जी ने एक नया संसार खोला है, पुस्तक प्रेमियों के लिए एक नए किस्म का पाठ्य और नए पाठको के लिए जंगल की दुनिया में को जाने का अनुभव.
उनकी पहली किताब बन किस्सा बहुत रोचक तरह से लिखी गई है और सराहना योग्य है.
उसी की अगली कड़ी बात बनेचर है जिसे पांच जून को मेरे हाथ में साहित्य विमर्श के द्वारा पहुंचाई जानी है, और मुझे बेसब्री से मछराजा के नए किस्सों का इंतजार है.
आप भी डिस्काउंट प्राइस पर किताब खरीदें और आप पाएंगे की एक नई दुनिया आपक इंतजार कर रही है.
Rated 5 out of 5
Madan Mohan Upadhyay –
चूंकि मैंने बनकिस्सा पढ़ी है। इसलिए इस पुस्तक को लेकर अति उत्साहित हूं।
Rated 5 out of 5
Awadhesh Singh rathi –
Have a great book on nature as a rain
Rated 4 out of 5
कुमार अतुल –
बनकिस्सा पढ़ने के बाद अगले अंक के लिए बेचैन सा हो गया हूं । बनकिस्सा अद्भुत है । इसके अंदर की कहानियां एक नई दुनिया मे ले जाती है । मैं प्रेमचंद को तो नही देखा हु लेकिन बनकिस्सा पढ़ कर लगा वर्तमान के प्रेमचंद सुनील सर है । बात बनेचर फ्लिपकार्ट और अमेजन पर जितना जल्दी हो सर उपलब्ध कराइये । धन्यवाद
Rated 5 out of 5
प्रगति –
अमूमन किताबें या तो एंटरटेनमेंट करती हैं या नॉलेज देती हैं पर ये अनोखी किताब ये दोनों काम एक साथ करती है। इसके साथ ही, बच्चों की मनपसंद जंगल-जंगल वाली कहानियाँ बड़ों को पढ़नी भी उतनी ही ज़रूरी लगती हैं।
Rated 5 out of 5
Avinash Gupta –
इन दोनों पुस्तकों का मिलना किसी स्वप्न के पूरे होने जैसा ही है
यह दोनों मुझे तब प्राप्त हुईं जब मैं अपने कार्य स्थल पर था
मैं बहुत व्यग्र था इन्हें खोलने औऱ पढ़ने के लिए
जब मैं घर पर गया तब आनन-फ़ानन में पैकेट खोलकर इन्हें जी भर निहारता रहा
फ़िर कुछ समय बाद भूमिका पढ़कर बनक़िस्सा का पहला अध्याय पढ़ना शुरू किया
औऱ सारे चलचित्र मेरी आँखों के सामने तैरने लगे
भेड़ें औऱ मारखोर नामक अध्याय को दो बार पढ़ा
पूरी रात इनके क़िरदार मेरे स्वप्न में दिखते रहें
यहीं कहूंगा कि नई वाली हिंदी से अगर शिकायतें हो तो कृपया बनक़िस्सा औऱ बात बनेचर को जरूर आजमाए
सारी शिकायतें दूर हो जाएंगी
औऱ बनक़िस्सा औऱ बात बनेचर से प्रेम हो जाएगा
#बनक़िस्सा
#बातबनेचर
#सुनीलकुमारसिंक्रेटिक
Rated 5 out of 5
Rajeev Roshan –
शानदार पुस्तक। हर पाठक यह पसंद होनी चाहिए।
Rated 5 out of 5
Durgesh Bansal –
मैंने सुनील जी को इससे पहले कभी नहीं पढ़ा था तो थोड़ी सी शंका थी कि किताब कैसी होगी। पर जब किताब पढ़नी शुरू की तो पड़ता है चला गया और कब मैंने 6 कहानियां पढ़ ली मालूम नहीं पड़ा। मैं अमूमन कहानियों की किताब से एक वार में एक या दो कहानी ही पढ़ता हूँ फिर अगली सिटिंग में एक या दो। इस तरह से एक किताब को पढ़ने में काफी समय लगाता हूँ। पर ये किताब मैंने सिर्फ दो सिटिंग में खत्म कर दी। पहली कहानी स्वार्थी की पहचान से जो जंगल मे प्रवेश किया वह आखिरी कहानी डांगर की खोज तक ऐसा लगा जैसे मच्छराजा के सामने बैठकर सुन रहे हों।
बहुत ही शानदार किताब बड़ों के साथ साथ बच्चों के भी पढ़ने लायक।
Rated 5 out of 5
Harshit yadav –
“बनकिस्सा”और “बात बनेचर”-
दोनों पुस्तको का “नयी वाली हिंदी” की साहित्यधारा में अपना विशिष्ट स्थान निम्न कारणों से है-
१. इन पुस्तको का बृहद पाठक वर्ग :- क्या बच्चे,क्या युवान,क्या प्रौढ़ इत्यादि सभी आयु वर्ग के जनमानस को इन कहानियों के मनोरंजक शैलीयुक्त कथानकों में मानव जाति को दिए नैतिक सन्देश अपना ध्यानाकृष्ट कर रहे है। “नयी वाली हिंदी” की पृष्ठधारा में किसी अन्य लेखक की कोई रचना नहीं है जो बच्चों से लेकर बड़ो तक इतने विशाल पाठक वर्ग के अंतर्मन को एक समान रूप से पठन के लिए आकर्षित कर आनंद प्रदान कर सके फिर चाहे वह “अक्टूबर जंक्शन” , “इब्नबतूती” के दिव्यप्रकाश दुबेजी हो या “औघड़” के नीलोत्पल मृणालजी या “बागी बलिया” के सत्य व्यासजी हो।
2. साथ ही साथ इन सभी कहानियों की एक विशिष्ट संवाद शैली अर्थात प्रत्येक कहानी में तीन मित्रो मछराजा(किंगफ़िशर),जलकाक(पनकौवा),कछुआ की त्रिमूर्ति झील के किनारे बैठक जमकर सभी कहानियों के उद्भव की पृष्ठभूमि बनाते है ।यह मित्र मंडली सभी कहानियों को एक समान रूप से गति प्रदान करती है। उपसंहार रूप में मछराजा जलकाक और कछुआ प्रत्येक कहानी में मानव जाति को कोई न कोई एक नैतिक सीख प्रदान कर कहानी को विराम देते है।
एक पाठक ने सही ही कहा है कि –
सामान्य सा दिखने वाला एक व्यक्ति सुनील कुमार सिंकरेटिक तभी यह सब लिख सकता है जब उसने उस प्रकृति को जिया हो ,
निश्चय ही सुनीलजी का वन्यजीवन और वन्यजीव सम्बन्धी ज्ञान उनकी कहानियों में पात्रो के रूप में आये विभिन्न जीव जन्तुओं की विशिष्ट विशेषताओं (जिनसे अधिकांश पाठक अपरिचित ही होंगे) को रेखांकित करने पर स्पष्ट होता है।
:-हर्षे
Rated 5 out of 5
रामकिशोर खुड़िवाल –
किताब प्राप्त हो गई है। किताबें बहुत कम ही लिखी गई है,
Rated 5 out of 5
Atul –
Inspired??? me for children to old age group
Rated 5 out of 5
अनूप सिंह –
बात बनेचर
जंगल में बहुत घूमना तो नहीं हो पाया है लेकिन जंगल को शब्द दृश्य से कथा के जीवंत चित्र रूप में देखने का अवसर इस पुस्तक ने दिला दिया । यह सर्वविदित ही है कि हरेक कहानी कोई संदेश, भाव और संवेदना को लिए रहती है उसी तरह बात बनेचर की भी हर कहानी हमारे सांसारिक मूल्यों के पतन , परिवर्तन और प्रगतिशील प्रवाह को बनाये रखते हुए जंगल में ले जाती है हमारे अपने भीतर के जंगल को साधने की कोशिश के साथ ।
कुछ कहानियाँ तो ऐसी हैं जो आज राजनीतिक हो चुके देश में ज्यादा प्रासंगिक हो जाती हैं —
इनमें एक है ‘ कानून का राज ‘ — जिसमें एक हिरण परिस्थितिवश मनुष्यों के कटघरे में आ जाता है और उसे स्वयं को निर्दोष साबित करने की जद्दोजहद करनी पड़ती है । कहानी एक पल को यह सोचने पर विवश जरूर कर देगी कि जंगल का कानून हमारे वाले से कहीं ज्यादा अच्छा तो नहीं ।
मनुष्यों को किसकी जरूरत होनी चाहिए? इसका उत्तर भी ‘ बैल और कुत्ता ‘ कहानी दे देगी ।
वर्तमान समय में सभी को लोकप्रिय होने की हवस चढ़ी है जिस पर सबसे सशक्त कटाक्ष करती कहानी ‘ राजा कौन ‘ हमें पढ़नी चाहिए। मोटिवेशन तो जो मिलेगा वो अलग , अपने आपको थोड़ा और गहरा बनाने की भूख जरूर जगेगी । उदाहरण के लिए एक दो वाक्य पर्याप्त होंगे – ‘ राजा दावे नहीं करता । उसे दंभ भरने की जरूरत नहीं होती ।
‘ राजा न स्पर्धा करता है , न राजा का कोई स्पर्धी होता है । ‘
बाकी कहानियों से भी जीवन के लिए पोषक बातें मिलेंगी जैसे – ‘ जीने का अर्थ है – नवाचार ‘ ।
कई बार लेखक अपनी व्यक्त शैली के अनूठेपन से चौंकाता और सीखाता भी है । एक स्थिर स्थिति को व्यक्त करता उसका ये वाक्य कि – ‘ अगले पल में यहाँ ऐसा कुछ भी न होता था , जो पिछले पल में न हुआ हो । ‘
लेखक Sunil Kumar Sinkretik को भविष्य के लिए शुभकामनाएँ इस अपेक्षा और आग्रह के साथ कि वो आगे जंगल पर उपन्यास भी लिखें जिससे हम न केवल पूरा चलचित्र देंखे बल्कि हमारा जंगल से दूरी भी दूरी न रहे ।
और प्रकाशक साहित्य विमर्श को भी बहुत बहुत साधुवाद कि अपनी इस यात्रा को सफल के साथ साथ सार्थक भी बनाएँ और इस तरह के नवोन्मेष को अवसर देते रहें । बस एक सुझाव था कि कठिन शब्दों का अर्थ अगर पीछे के पृष्ठ पर न देकर उसी पृष्ठ पर नीचे दे दिया जाय तो अध्ययन का आनंद बढ़ जायेगा । धन्यवाद ।
– अनूप सिंह
#बातबनेचर #साहित्य
Rated 5 out of 5
साहित्य विमर्श (verified owner)–
#बनकिस्सा और #बात_बनेचर बस नाम अलग हैं पर दोनों एक ही #नेचर की किताब है …. हाँ दूसरी किताब पहले से ज्यादा रोचक और आकर्षक बनी है । Sunil Kumar Sinkretik जी द्वारा लिखित इन दोनों किताबों में शामिल कहानियों में आपको जीवन का सार मिलेगा । जैसा कि मैंने पहले ही पुस्तक परिचय में लिखा था कि वन्य जीवों की भाषा में मानवीय मूल्यों को झकझोरने वाली किताब है । हर कहानी एक नयी अवधारणा, सोच और सिद्धांतो से लबरेज है .. हाँ यह सही है कि वह बिल्कुल आपके जीवन से जुड़ी हुई या आसपास के लोगों , घटनाओं, स्थिति-परिस्थितियों या चीजों से स्पष्ट संबंधित नजर आएगी । कुछ कहानियों के भाव आपको सचेत , विवेकवान और समृद्ध बनाएगा तो कुछ आपके विचारों को जोरदार टक्कर मारकर उसे सुधारने और परिशुद्ध करने की कोशिश करेगा । हमारे समाज या संसार में उत्पन्न हो रही विसंगतियों का एकमात्र कारण है लोगों का अपने सिद्धांतो से डिग कर स्वयं को या अपने स्वार्थ को सर्वोच्च स्थान पर स्थापित करना … समस्त चालाक लोग एकीकरण की जगह ध्रुवीकरण की अग्नि में सारे मापदंडो को झोंकने में लगे हैं जो एक बड़ी त्रासदी है… लेखक द्वारा इतने सहज शब्दों में समस्त मानवीय दुर्गुणों और दुराचारों को वन्यजीवों की भाषा में उल्लेखित करना एवं उसके उपचार के रास्तों का रेखांकित करना वाकई अद्भुत कल्पनाशीलता का परिचय है । मैं अब तक मिले दो लोगों एक मेरे पिता और दूसरा Triloki Nath Diwakar जी की कल्पनाशीलता से काफी प्रभावित रहा हूँ … ये दो ऐसे लोग हैं मेरे परिचय में जो कभी भी किसी भी विषय वस्तु पर एक नयी कहानी गढ़ देते हैं.. और सामने वाले को सहज ही अपने प्रभाव में कर लेते हैं । और अब ये तीसरे शख्स हैं जिनकी कल्पनाशीलता मुझे सीधे प्रभावित कर रही है । बनकिस्सा से चला कहानियों का सफर बात बनेचर के बाद भी जारी रहेगा ऐसा मुझे अंदाजा ही नहीं पूरा यकीन है क्योंकि लेखक कहानियों का राजा मालूम जान पड़ता है । आज के समय में जब लोग खुद ही खुद में या कहूँ तो सोशल मीडिया के आभासी दुनियां में इस कदर मगन हैं कि उनके आसपास क्या चल रहा है या क्या कुछ है जो वे नजरअंदाज कर रहे हैं इसका पता ही नहीं चल रहा है उस दौर में इन्होने एक कथावाचक और दो हमेशा उत्सुक होकर कहानी सुनने वाले श्रोताओं के माध्यम से जिन – जिन बातों को उकेरा है … वह सराहनीय तो है साथ ही अतुलनीय और अकल्पनीय भी है । हम जब छोटे थे तो कभी दादा तो कभी दादी के सीने लग काफी कहानियां सुना करते थे जिसका हमारे मानस पटल पर गहरा प्रभाव पड़ा है .. अपने मूल्यों और सिद्धांतो की आधारशिला कहीं ना कहीं वहीं से स्थापित हुई है । उनलोगों के साथ ही अपने माता-पिता के व्यक्तित्व और सिद्धातों से विचारों और व्यवहारों के साथ ही सिद्धातों में संबलता मिली है । ज्ञान हमेशा ऊँचे मापदंडो और सच्चे रास्तों की ओर निर्देशित करता है .. मुश्किलें और परेशानियां सिद्धातों से डिगाने की कोशिश भले करते हैं पर वह जो उच्च सिद्धातों के द्वारा पोषित संस्कार अंदर स्थापित है वह बिखरने से, सच कहूँ तो मिटने से बचा लेता है । ये दोनों पुस्तकें मानवों के उच्च आदर्शों को स्थापित और पोषित करने वाले हैं । साथ ही कुछ वैसे भी वन्यजीवों के नामों, गुणों और व्यवहारों को आपको जानने को मिलेगा जो आपको रोमांचित करेगा , हाँ हिन्दी के कुछ वैसे शब्द जो आम बोलचाल में शामिल नहीं है वह आपको नया और थोड़ा परेशान करने वाला लगेगा …. परंतु दूसरी किताब में लेखक ने इस बात का ध्यान रखा है और ज्यादातर कठिन शब्दों के अर्थ किताब के आखिर में लिख दिया है । पहली किताब पढ़ने के बाद समय नहीं मिल पाया था कि अपने अनुभव आपसबों से साझा कर सकूं इसलिए सामूहिक रूप से आज लिख दिया और यह काफी है क्योंकि दोनों किताबों का थीम और उद्देश्य बिल्कुल समान है ।
आज के लिए बस इतना ही ।
आपके स्नेह की अपेक्षा में आपका मित्र
जय कृष्ण कुमार
Rated 5 out of 5
Prakash kumar ram –
कम शब्दों में कहूँ तो एक पठनीय, कई सारी सीख सीखा जाने वाली अविस्मरणीय पुस्तक है बात बनेचर। जिसे हर एक सुधि पाठक को अवश्य अवश्य पढ़ना ही चाहिए।
Rated 5 out of 5
Ravi Upadhyay –
Kitab ki sabhi kahani Jiwan jine ki kala sikhati hai.
Rated 5 out of 5
उदय कमल साहित्य संगम –
बात बनेचर यकीनन एक उम्दा कृति है।
Rated 5 out of 5
Shobhit kumar –
I want to read this book.
Rated 5 out of 5
Gaurav Kumar Nigam (verified owner)–
Baat Banechar is modern panchtantra. It is a must read book for every student.
“उस जीवन पर क्या गर्व करना जिसमें गिनाने के लिए वर्षों की संख्या के सिवा कुछ न हो। बदलाव में जिंदगी है, ठहराव में नहीं।”
– बात बनेचर
बात बनेचर वो किताब है कि जब इसका पहला पन्ना खोलो तो ऐसा लगता है मानों जंगल के प्रवेश द्वार पर खड़े हो और पंछियों की, पशुओं की आवाज़ें अंदर बुला रही हों। एक बार इसकी कोई भी कहानी पढ़ने की देर नहीं है कि ख़ुद कहाँ बैठे हैं, कितनी देर से पढ़ रहे हैं, ये भी याद नहीं रहता।
rudrabhiraj@gmail.com –
बनकिस्सा यानी की इस पुस्तक के पहले भाग को पढ़ने के बाद मैं ये निश्चित रूप से कह सकता हूँ कि ये किताब हर एक पुस्तक प्रेमी के संकलन में जरुर होनी चाहिए..|
Gaurav pathak –
किताब नही बल्कि जंगल की जिंदगी है❤️❤️
Atul sharma –
प्रकृति को जानने और समझने के लिए सबसे बेहतरीन स्थल
सिद्धार्थ अरोड़ा ‘सहर’ –
इस किताब में यूँ तो अलग अलग कई कहानियां हैं लेकिन पढ़ते पढ़ते महसूस होगा कि ये कहानियाँ अलग नहीं, एक छोर से निकली हैं और हर बार, नई से नई जगह ले जाने का माद्दा रखती हैं।
Sachin Mishra –
सुनील कुमार सिंकरेटिक एक नई विधा इजाद कर रहे हैं जिसे हम कुछ पंचतंत्र के श्रेणी में कुछ वन्य जीवन के ज्ञान के बारे में और कुछ कहानी की श्रेणी में रखते हुए एक नई पुस्तक शाखा का नाम दे सकते हैं.
सुनील जी ने एक नया संसार खोला है, पुस्तक प्रेमियों के लिए एक नए किस्म का पाठ्य और नए पाठको के लिए जंगल की दुनिया में को जाने का अनुभव.
उनकी पहली किताब बन किस्सा बहुत रोचक तरह से लिखी गई है और सराहना योग्य है.
उसी की अगली कड़ी बात बनेचर है जिसे पांच जून को मेरे हाथ में साहित्य विमर्श के द्वारा पहुंचाई जानी है, और मुझे बेसब्री से मछराजा के नए किस्सों का इंतजार है.
आप भी डिस्काउंट प्राइस पर किताब खरीदें और आप पाएंगे की एक नई दुनिया आपक इंतजार कर रही है.
Madan Mohan Upadhyay –
चूंकि मैंने बनकिस्सा पढ़ी है। इसलिए इस पुस्तक को लेकर अति उत्साहित हूं।
Awadhesh Singh rathi –
Have a great book on nature as a rain
कुमार अतुल –
बनकिस्सा पढ़ने के बाद अगले अंक के लिए बेचैन सा हो गया हूं । बनकिस्सा अद्भुत है । इसके अंदर की कहानियां एक नई दुनिया मे ले जाती है । मैं प्रेमचंद को तो नही देखा हु लेकिन बनकिस्सा पढ़ कर लगा वर्तमान के प्रेमचंद सुनील सर है । बात बनेचर फ्लिपकार्ट और अमेजन पर जितना जल्दी हो सर उपलब्ध कराइये । धन्यवाद
प्रगति –
अमूमन किताबें या तो एंटरटेनमेंट करती हैं या नॉलेज देती हैं पर ये अनोखी किताब ये दोनों काम एक साथ करती है। इसके साथ ही, बच्चों की मनपसंद जंगल-जंगल वाली कहानियाँ बड़ों को पढ़नी भी उतनी ही ज़रूरी लगती हैं।
Avinash Gupta –
इन दोनों पुस्तकों का मिलना किसी स्वप्न के पूरे होने जैसा ही है
यह दोनों मुझे तब प्राप्त हुईं जब मैं अपने कार्य स्थल पर था
मैं बहुत व्यग्र था इन्हें खोलने औऱ पढ़ने के लिए
जब मैं घर पर गया तब आनन-फ़ानन में पैकेट खोलकर इन्हें जी भर निहारता रहा
फ़िर कुछ समय बाद भूमिका पढ़कर बनक़िस्सा का पहला अध्याय पढ़ना शुरू किया
औऱ सारे चलचित्र मेरी आँखों के सामने तैरने लगे
भेड़ें औऱ मारखोर नामक अध्याय को दो बार पढ़ा
पूरी रात इनके क़िरदार मेरे स्वप्न में दिखते रहें
यहीं कहूंगा कि नई वाली हिंदी से अगर शिकायतें हो तो कृपया बनक़िस्सा औऱ बात बनेचर को जरूर आजमाए
सारी शिकायतें दूर हो जाएंगी
औऱ बनक़िस्सा औऱ बात बनेचर से प्रेम हो जाएगा
#बनक़िस्सा
#बातबनेचर
#सुनीलकुमारसिंक्रेटिक
Rajeev Roshan –
शानदार पुस्तक। हर पाठक यह पसंद होनी चाहिए।
Durgesh Bansal –
मैंने सुनील जी को इससे पहले कभी नहीं पढ़ा था तो थोड़ी सी शंका थी कि किताब कैसी होगी। पर जब किताब पढ़नी शुरू की तो पड़ता है चला गया और कब मैंने 6 कहानियां पढ़ ली मालूम नहीं पड़ा। मैं अमूमन कहानियों की किताब से एक वार में एक या दो कहानी ही पढ़ता हूँ फिर अगली सिटिंग में एक या दो। इस तरह से एक किताब को पढ़ने में काफी समय लगाता हूँ। पर ये किताब मैंने सिर्फ दो सिटिंग में खत्म कर दी। पहली कहानी स्वार्थी की पहचान से जो जंगल मे प्रवेश किया वह आखिरी कहानी डांगर की खोज तक ऐसा लगा जैसे मच्छराजा के सामने बैठकर सुन रहे हों।
बहुत ही शानदार किताब बड़ों के साथ साथ बच्चों के भी पढ़ने लायक।
Harshit yadav –
“बनकिस्सा”और “बात बनेचर”-
दोनों पुस्तको का “नयी वाली हिंदी” की साहित्यधारा में अपना विशिष्ट स्थान निम्न कारणों से है-
१. इन पुस्तको का बृहद पाठक वर्ग :- क्या बच्चे,क्या युवान,क्या प्रौढ़ इत्यादि सभी आयु वर्ग के जनमानस को इन कहानियों के मनोरंजक शैलीयुक्त कथानकों में मानव जाति को दिए नैतिक सन्देश अपना ध्यानाकृष्ट कर रहे है। “नयी वाली हिंदी” की पृष्ठधारा में किसी अन्य लेखक की कोई रचना नहीं है जो बच्चों से लेकर बड़ो तक इतने विशाल पाठक वर्ग के अंतर्मन को एक समान रूप से पठन के लिए आकर्षित कर आनंद प्रदान कर सके फिर चाहे वह “अक्टूबर जंक्शन” , “इब्नबतूती” के दिव्यप्रकाश दुबेजी हो या “औघड़” के नीलोत्पल मृणालजी या “बागी बलिया” के सत्य व्यासजी हो।
2. साथ ही साथ इन सभी कहानियों की एक विशिष्ट संवाद शैली अर्थात प्रत्येक कहानी में तीन मित्रो मछराजा(किंगफ़िशर),जलकाक(पनकौवा),कछुआ की त्रिमूर्ति झील के किनारे बैठक जमकर सभी कहानियों के उद्भव की पृष्ठभूमि बनाते है ।यह मित्र मंडली सभी कहानियों को एक समान रूप से गति प्रदान करती है। उपसंहार रूप में मछराजा जलकाक और कछुआ प्रत्येक कहानी में मानव जाति को कोई न कोई एक नैतिक सीख प्रदान कर कहानी को विराम देते है।
एक पाठक ने सही ही कहा है कि –
सामान्य सा दिखने वाला एक व्यक्ति सुनील कुमार सिंकरेटिक तभी यह सब लिख सकता है जब उसने उस प्रकृति को जिया हो ,
निश्चय ही सुनीलजी का वन्यजीवन और वन्यजीव सम्बन्धी ज्ञान उनकी कहानियों में पात्रो के रूप में आये विभिन्न जीव जन्तुओं की विशिष्ट विशेषताओं (जिनसे अधिकांश पाठक अपरिचित ही होंगे) को रेखांकित करने पर स्पष्ट होता है।
:-हर्षे
रामकिशोर खुड़िवाल –
किताब प्राप्त हो गई है। किताबें बहुत कम ही लिखी गई है,
Atul –
Inspired??? me for children to old age group
अनूप सिंह –
बात बनेचर
जंगल में बहुत घूमना तो नहीं हो पाया है लेकिन जंगल को शब्द दृश्य से कथा के जीवंत चित्र रूप में देखने का अवसर इस पुस्तक ने दिला दिया । यह सर्वविदित ही है कि हरेक कहानी कोई संदेश, भाव और संवेदना को लिए रहती है उसी तरह बात बनेचर की भी हर कहानी हमारे सांसारिक मूल्यों के पतन , परिवर्तन और प्रगतिशील प्रवाह को बनाये रखते हुए जंगल में ले जाती है हमारे अपने भीतर के जंगल को साधने की कोशिश के साथ ।
कुछ कहानियाँ तो ऐसी हैं जो आज राजनीतिक हो चुके देश में ज्यादा प्रासंगिक हो जाती हैं —
इनमें एक है ‘ कानून का राज ‘ — जिसमें एक हिरण परिस्थितिवश मनुष्यों के कटघरे में आ जाता है और उसे स्वयं को निर्दोष साबित करने की जद्दोजहद करनी पड़ती है । कहानी एक पल को यह सोचने पर विवश जरूर कर देगी कि जंगल का कानून हमारे वाले से कहीं ज्यादा अच्छा तो नहीं ।
मनुष्यों को किसकी जरूरत होनी चाहिए? इसका उत्तर भी ‘ बैल और कुत्ता ‘ कहानी दे देगी ।
वर्तमान समय में सभी को लोकप्रिय होने की हवस चढ़ी है जिस पर सबसे सशक्त कटाक्ष करती कहानी ‘ राजा कौन ‘ हमें पढ़नी चाहिए। मोटिवेशन तो जो मिलेगा वो अलग , अपने आपको थोड़ा और गहरा बनाने की भूख जरूर जगेगी । उदाहरण के लिए एक दो वाक्य पर्याप्त होंगे – ‘ राजा दावे नहीं करता । उसे दंभ भरने की जरूरत नहीं होती ।
‘ राजा न स्पर्धा करता है , न राजा का कोई स्पर्धी होता है । ‘
बाकी कहानियों से भी जीवन के लिए पोषक बातें मिलेंगी जैसे – ‘ जीने का अर्थ है – नवाचार ‘ ।
कई बार लेखक अपनी व्यक्त शैली के अनूठेपन से चौंकाता और सीखाता भी है । एक स्थिर स्थिति को व्यक्त करता उसका ये वाक्य कि – ‘ अगले पल में यहाँ ऐसा कुछ भी न होता था , जो पिछले पल में न हुआ हो । ‘
लेखक Sunil Kumar Sinkretik को भविष्य के लिए शुभकामनाएँ इस अपेक्षा और आग्रह के साथ कि वो आगे जंगल पर उपन्यास भी लिखें जिससे हम न केवल पूरा चलचित्र देंखे बल्कि हमारा जंगल से दूरी भी दूरी न रहे ।
और प्रकाशक साहित्य विमर्श को भी बहुत बहुत साधुवाद कि अपनी इस यात्रा को सफल के साथ साथ सार्थक भी बनाएँ और इस तरह के नवोन्मेष को अवसर देते रहें । बस एक सुझाव था कि कठिन शब्दों का अर्थ अगर पीछे के पृष्ठ पर न देकर उसी पृष्ठ पर नीचे दे दिया जाय तो अध्ययन का आनंद बढ़ जायेगा । धन्यवाद ।
– अनूप सिंह
#बातबनेचर #साहित्य
साहित्य विमर्श (verified owner) –
#बनकिस्सा और #बात_बनेचर बस नाम अलग हैं पर दोनों एक ही #नेचर की किताब है …. हाँ दूसरी किताब पहले से ज्यादा रोचक और आकर्षक बनी है । Sunil Kumar Sinkretik जी द्वारा लिखित इन दोनों किताबों में शामिल कहानियों में आपको जीवन का सार मिलेगा । जैसा कि मैंने पहले ही पुस्तक परिचय में लिखा था कि वन्य जीवों की भाषा में मानवीय मूल्यों को झकझोरने वाली किताब है । हर कहानी एक नयी अवधारणा, सोच और सिद्धांतो से लबरेज है .. हाँ यह सही है कि वह बिल्कुल आपके जीवन से जुड़ी हुई या आसपास के लोगों , घटनाओं, स्थिति-परिस्थितियों या चीजों से स्पष्ट संबंधित नजर आएगी । कुछ कहानियों के भाव आपको सचेत , विवेकवान और समृद्ध बनाएगा तो कुछ आपके विचारों को जोरदार टक्कर मारकर उसे सुधारने और परिशुद्ध करने की कोशिश करेगा । हमारे समाज या संसार में उत्पन्न हो रही विसंगतियों का एकमात्र कारण है लोगों का अपने सिद्धांतो से डिग कर स्वयं को या अपने स्वार्थ को सर्वोच्च स्थान पर स्थापित करना … समस्त चालाक लोग एकीकरण की जगह ध्रुवीकरण की अग्नि में सारे मापदंडो को झोंकने में लगे हैं जो एक बड़ी त्रासदी है… लेखक द्वारा इतने सहज शब्दों में समस्त मानवीय दुर्गुणों और दुराचारों को वन्यजीवों की भाषा में उल्लेखित करना एवं उसके उपचार के रास्तों का रेखांकित करना वाकई अद्भुत कल्पनाशीलता का परिचय है । मैं अब तक मिले दो लोगों एक मेरे पिता और दूसरा Triloki Nath Diwakar जी की कल्पनाशीलता से काफी प्रभावित रहा हूँ … ये दो ऐसे लोग हैं मेरे परिचय में जो कभी भी किसी भी विषय वस्तु पर एक नयी कहानी गढ़ देते हैं.. और सामने वाले को सहज ही अपने प्रभाव में कर लेते हैं । और अब ये तीसरे शख्स हैं जिनकी कल्पनाशीलता मुझे सीधे प्रभावित कर रही है । बनकिस्सा से चला कहानियों का सफर बात बनेचर के बाद भी जारी रहेगा ऐसा मुझे अंदाजा ही नहीं पूरा यकीन है क्योंकि लेखक कहानियों का राजा मालूम जान पड़ता है । आज के समय में जब लोग खुद ही खुद में या कहूँ तो सोशल मीडिया के आभासी दुनियां में इस कदर मगन हैं कि उनके आसपास क्या चल रहा है या क्या कुछ है जो वे नजरअंदाज कर रहे हैं इसका पता ही नहीं चल रहा है उस दौर में इन्होने एक कथावाचक और दो हमेशा उत्सुक होकर कहानी सुनने वाले श्रोताओं के माध्यम से जिन – जिन बातों को उकेरा है … वह सराहनीय तो है साथ ही अतुलनीय और अकल्पनीय भी है । हम जब छोटे थे तो कभी दादा तो कभी दादी के सीने लग काफी कहानियां सुना करते थे जिसका हमारे मानस पटल पर गहरा प्रभाव पड़ा है .. अपने मूल्यों और सिद्धांतो की आधारशिला कहीं ना कहीं वहीं से स्थापित हुई है । उनलोगों के साथ ही अपने माता-पिता के व्यक्तित्व और सिद्धातों से विचारों और व्यवहारों के साथ ही सिद्धातों में संबलता मिली है । ज्ञान हमेशा ऊँचे मापदंडो और सच्चे रास्तों की ओर निर्देशित करता है .. मुश्किलें और परेशानियां सिद्धातों से डिगाने की कोशिश भले करते हैं पर वह जो उच्च सिद्धातों के द्वारा पोषित संस्कार अंदर स्थापित है वह बिखरने से, सच कहूँ तो मिटने से बचा लेता है । ये दोनों पुस्तकें मानवों के उच्च आदर्शों को स्थापित और पोषित करने वाले हैं । साथ ही कुछ वैसे भी वन्यजीवों के नामों, गुणों और व्यवहारों को आपको जानने को मिलेगा जो आपको रोमांचित करेगा , हाँ हिन्दी के कुछ वैसे शब्द जो आम बोलचाल में शामिल नहीं है वह आपको नया और थोड़ा परेशान करने वाला लगेगा …. परंतु दूसरी किताब में लेखक ने इस बात का ध्यान रखा है और ज्यादातर कठिन शब्दों के अर्थ किताब के आखिर में लिख दिया है । पहली किताब पढ़ने के बाद समय नहीं मिल पाया था कि अपने अनुभव आपसबों से साझा कर सकूं इसलिए सामूहिक रूप से आज लिख दिया और यह काफी है क्योंकि दोनों किताबों का थीम और उद्देश्य बिल्कुल समान है ।
आज के लिए बस इतना ही ।
आपके स्नेह की अपेक्षा में आपका मित्र
जय कृष्ण कुमार
Prakash kumar ram –
कम शब्दों में कहूँ तो एक पठनीय, कई सारी सीख सीखा जाने वाली अविस्मरणीय पुस्तक है बात बनेचर। जिसे हर एक सुधि पाठक को अवश्य अवश्य पढ़ना ही चाहिए।
Ravi Upadhyay –
Kitab ki sabhi kahani Jiwan jine ki kala sikhati hai.
उदय कमल साहित्य संगम –
बात बनेचर यकीनन एक उम्दा कृति है।
Shobhit kumar –
I want to read this book.
Gaurav Kumar Nigam (verified owner) –
Baat Banechar is modern panchtantra. It is a must read book for every student.