जुर्म की अंधी और पेचीदा गलियों में भटकते, मशक्कत करते और किसी मुकाम पर पहुँचने की जद्दो जहद उसे एक सामान्य परिवार के नवयुवक से इलाके का सबसे बड़ा बाहुबली होने का ख़िताब दिलवा तो देती है, मगर शायद वह भूल गया था कि इस सफ़र की कई कीमतें भी उसे ही चुकानी थीं। भूल गया था कि इस रास्ते पर आगे बढ़ते जाना ही है, और वापसी के हर रास्ते हर उठते क़दमों के साथ खुद ब खुद ध्वस्त होते जाते हैं। समझौतों, शह, मात, दोस्त, दुश्मन, घात-प्रतिघात के तराजू में निरंतर डोलती जिंदगी कब एक ऐसी गली में पहुँच जाती है, जिसके आगे फिर जाने का कोई रास्ता नहीं होता। राजवीर की जिन्दगी को जिसने डिप्टी बनने जैसी सामर्थ्य दी थी, वही उसका वाटर लू भी साबित हुआ। एक महत्वाकांक्षी युवक के उत्थान एवं पतन की रोमांचक कथा
आलोक सिंह खालौरी मूलतः बुलंदशहर के ग्राम खालौर के निवासी हैं। वह पेशे से वकील हैं। उनके पिताजी के न्यायिक अधिकारी होने के चलते उनका बचपन अलग-अलग शहरों में बीता था। उरई से शुरू होकर रुड़की,सीतापुर, गोरखपुर, गोंडा, आगरा, बदायूं और मेरठ में उनकी शिक्षा दीक्षा सम्पन्न हुई। मेरठ में ही उन्होंने वकालत की पढ़ाई पूरी कर प्रेक्टिस शरू कर दी थी। उनका पहला उपन्यास राजमुनि था जो कि परलौकिक रोमांचकथा थी।
Reviews
There are no reviews yet