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जब नाम साहिल हो
तो गिर गिर के संभलना पड़ता है
तो मर मर के जीना पड़ता है
कदम लड़खड़ाते हों तो भी
मजबूती से पैरों पर खड़ा होना पड़ता है
नीलम की मौत ने उसके वजूद का पुर्जा-पुर्जा बिखेर दिया था, तो भी अपनी व्यक्तिगत त्रासदी से उबरना लाजिमी था।
विमल सीरीज का सनसनीखेज शाहकार
‘मैं अपराधी जनम का’ का दूसरा और आखिरी खंड
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