Haraami – बाबा अलाव के पास खाँसता था। साथ ही सूखे-झुर्रीदार घुटनों पर ठुड्डी टिकाये, दुविधा और ख़ुशी के भँवर में डूबता-उतरता, आग कुरेदने लगता, एक बाप के लिए सौभाग्य का उत्सव उसके पुत्र के विवाह का अवसर होता है। दूसरा सुख मिलता है जब पुत्र के घर में कुल-वंश का खेवनहार आये।
इन दोनों ख़ुशियों के योग से बड़ा, दर्द से छाती चाक करने वाला एक दुःख भी है। और वह है एक बाप के सामने पुत्र तथा पौत्र का मरण। मूँज की रस्सी से कफ़न-काठी का बिस्तर उसके सामने ही कसा जाता है। अर्थी उठती है।
अन्तिम यात्रा की तैयारी और प्रवास में ख़ुद शामिल होता हुआ वह श्मशान तक जाता है और फिर ज्वाला के पदन्यास को अपनी आँखों में और छाती पर महसूस करता हुआ, धूँ-धूँ कर जलती चिता के सामने हिन्दू धर्म के उस अवांछित सनातन पुण्य का भागी बन जाता है, जिसकी उसने कभी कामना ही नहीं की।
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