
साहित्य विमर्श प्रकाशन
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Lakadbaggha | लकड़बग्घा
“एक और कविता सुनोगी?” पीछे से ही उसने पुकारा।
लड़की पीछे नहीं मुड़ी। बस आगे जाते हुए ही उसने बीच की उँगली दिखा दी। वह अभी दो कदम ही आगे बढ़ी थी कि स्टील के चमचमाते हथौड़े का एक जोरदार वार उसकी दायीं कनपटी पर पड़ा और वह झूलकर बेजान पुतले की तरह बायीं ओर गिर गयी।
हत्यारे ने सुप्रिया के सिर से निकलने वाली खून की पतली धार को बहते हुए देखा और उससे अपना पैर बचाते हुए आगे बढ़ गया। उसने बहुत ही करीने से हथौड़ा अपने बैग में रखते हुए कहा –“डिसरिस्पेक्ट ऑफ़ आर्ट एंड पोएट्री इस द फर्स्ट साइन ऑफ़ अ डेड सोसाइटी। तुम्हें जो करना है करो! बट नेवर डिसरिस्पेक्ट एन आर्टिस्ट। कविता सुनने में क्या जाता है? छोटी-सी तो कविता थी।” कहते हुए फिर उसकी आवाज कठोर हुई। उसने लाश की तरफ एक आखिरी निगाह डाली,
आसपास की स्थिति जाँची और बुदबुदाया –
“तुम्हें यंत्रणा दिए बिना मारना
अपूर्ण कर देता मेरे हृदय के एक भाग को
बहुत बेला निंद्रा से उठ बैठता
कामना के ज्वर से तप्त
किसी ऊँचाई पर ले जाकर तुम्हें धक्का देना
कितना उत्तेजक होता
और जो कोलाहल होता पश्चात् उसके
उसमें कितना संगीत होता प्रेयसी”
सत्य व्यास: अस्सी के दशक में बूढ़े हुए। नब्बे के दशक में जवान। इक्कीसवीं सदी के पहले दशक में बचपना गुजरा और कहते हैं कि नई सदी के दूसरे दशक में पैदा हुए हैं। अब जब पैदा ही हुए हैं तो खूब उत्पात मचा रहे हैं। चाहते हैं कि उन्हें कॉस्मोपॉलिटन कहा जाए। हालाँकि देश से बाहर बस भूटान गए हैं। पूछने पर बता नहीं पाते कि कहाँ के हैं। उत्तर प्रदेश से जड़ें जुड़ी हैं। २० साल तक जब खुद को बिहारी कहने का सुख लिया तो अचानक ही बताया गया कि अब तुम झारखंडी हो। उसमें भी खुश हैं। खुद जियो औरों को भी जीने दो के धर्म में विश्वास करते हैं और एक साथ कई-कई चीजें लिखते हैं। अंतर्मुखी हैं इसलिए फोन की जगह ईमेल पर ज्यादा मिलते हैं। ब्लॉगिंग, कविता और फिल्मों के रुचि रखने वाले सत्य व्यास फ़िलहाल दो फिल्मों की पटकथा लिख रहे हैं। पहले चारों उपन्यास बनारस टॉकीज, दिल्ली दरबार, चौरासी और बाग़ी बलिया ‘दैनिक जागरण-नीलशन बेस्टसेलर’ की सूची में शामिल रहे हैं। तीसरे उपन्यास चौरासी पर ग्रहण के नाम से वेब सीरीज भी बनी। 1931 -देश या प्रेम के बाद लकड़बग्घा इनका सातवाँ उपन्यास है। ईमेल : authorsatya@gmail.com
Weight | 200 g |
---|---|
Dimensions | 20 × 14 × 2 cm |
Nazim khan –
Marvlous, one sitting read, as expected, i m an old fan, became fan again, lots of love.❤️❤️❤️…
Sirf ek shikayat hai meri copy signed nhi thi jabki mene pre order kiya tha 😕
Rakesh Kumar Nanda –
“सीरियल किलिंग” पर आधारित थ्रिलर, लेखन की एक ऐसी विधा है जो दशकों से पाठकों और फिल्मी दर्शकों को अपनी और आकर्षित करती रही है। फिर जब कलम सत्य व्यास जैसे प्रख्यात लेखक की हो तो पाठकों की उम्मीद का आसमान छूना स्वाभाविक है।
ओटीटी नाम की चिड़िया ने जब से मनोरंजन जगत में अपना घोंसला बनाया है तब से भारतीय दर्शक थ्रिलर नाम की इस विधा को और करीब या कहें बारीकी से जान पाने में सक्षम हुआ है। यही कारण हैं कि ऐसी सीरीज जिस में एक ही प्रकार की कहानी को तोड़ मरोड़ कर पेश किया जाता है, उस से दर्शक जल्दी उब जाता है। खासकर सीरियल किलर वाली कहानियों में क्लाइमेक्स का मजबूत होना जरूरी हो जाता है। यदि समय से पहले दर्शक या पाठक ने क्लाइमेक्स का अंदाजा लगा लिया तो कहानी अपनी रोचकता बरकरार नहीं रख पाती।
हालिया प्रदर्शित कुछ थ्रिलर फिल्मों में जैसा कहानी का पैटर्न रहा है सत्य व्यास भी उसी पैटर्न पर कहानी को आगे बढ़ाते दिखते हैं। लगभग एक ही पेशे से जुड़ा एक तलाकशुदा कपल, बच्चे को ले कर उन के बीच चलती खींचतान, कातिल के कत्ल करने का एक जैसा तरीका, कातिल का किसी मानसिक बीमारी या अवसाद से ग्रसित होना और कातिल को सामने लाने के लिए पुलिस द्वारा खेले गए दांव का उल्टा पड़ जाना। “लकड़बग्घा” इसी पैटर्न पर उतार -चढ़ाव के साथ आगे बढ़ती रहती है।
किंतु पुस्तक को खास बनाती है लेखक द्वारा इस के प्रस्तुतीकरण का ढंग और स्वयं लेखक का ज्ञान जो लेखक द्वारा कभी अपने आख्यान से तो कभी किरदारों के माध्यम से कहानी में उद्धृत किया गया है। चाहे बेटिंग के कानून से लेकर आंखों में पोटेशियम का स्तर वाली मेडिकल साइंस की तकनीक हो या मनोविज्ञान की पुस्तक के नियम। ऐसी बहुत सारी चीज़े लकड़बग्घा में पढ़ने मिल जायेंगी जो लेखक के ज्ञान के वाइड रेंज की तकसीद करती हैं।
कहानी की बात करें तो ये 2022 में आई फिल्म फॉरेंसिक की तर्ज पर शुरू होती है, किरदार लगभग एक जैसे। क्लाइमेक्स तक पहुंचते -पहुंचते ये आपके दिल में कातिल के प्रति सहानुभूति जगा जाती है और छोड़ जाती है आपके साथ कुछ अनसुलझे सवाल। शायद एक थ्रिलर कहानी के अंत का यही सब से वाजिब तरीका है।
लेखक का एक और उम्दा प्रयास।
Abhinav Jain –
कल लकड़बग्घा पढ़कर ख़त्म की। सत्य व्यास जी नयी पीढ़ी के एक शानदार लेखक हैं। वे जिस तरीके से एक अलग ही अंदाज में कहानी बयां करते हैं वह क़ाबिले तारीफ है। उनकी हर किताब मैंने पढ़ी है और हर किताब पिछली किताब से बेहतर लगती है, जिसमें उफ़ कोलकाता और बाग़ी बलिया मेरी पसंदीदा हैं। और अब उनमे एक और किताब शुमार हो चुकी है- लकड़बग्घा।😍
सत्य व्यास जी उन लेखकों में से हैं जिनकी किताब हाथ में आने की उत्सुकता रहती है क्योंकि पता होता है कि पहले पन्ने से ही एक अलग तरह का मजा आने वाला है।😃
लकड़बग्घा एक थ्रिलर रहस्य कथा है जो एक सीरियल किलर के बारे में है। एक हत्यारा जो अपने को सही और दूसरों को गलत मानकर ईश्वरीय न्याय के तहत अपने चमचमाते हथौड़े से अपने शिकार को एक ही वार में एक आसान मौत के घाट उतार देता है। जिसका केस मिला है इंस्पेक्टर श्वेता को जो अपने पति फोरेंसिक एक्स्पर्ट विक्रांत से अलगाव झेल रही है और अपने बेटे अंकुर के साथ अकेली रहती है।
किताब में काफी रोचक घटनाएं और सीरियल किलर की अनोखी कविताओं के साथ-साथ आज तक ज्ञात सीरियल किलर्स के द्वारा कहे गए मुख्य कथनों को हर चैप्टर के शुरुआत में लिखा गया है। (विशेष नोट- उन कथनो में लिखा नाम “सत्य व्यास” हमारे अपने ही लेखक है कृपया अन्यथा न ले जाएं😂)
सस्पेंस बहुत ही अच्छा है और इंस्पेक्टर श्वेता और सीरियल किलर के निजी जीवन को भी बखूबी दिखाया गया है। अंत काफी रोचक था और पाठक के मन में काफी सवाल छोड़ जाता है। एक रहस्य कथा का अंत एक रहस्य के साथ होना काफी रोचक और शानदार था। सत्य व्यास जी ने अपने आलेख में लिखी गयी अपनी ही लाइन कि “थ्रिलर विधा जिसे लिखने से दीगर अदीब मना करते हैं” को झुटला दिया है और एक शानदार थ्रिलर सस्पेंस किताब दी है। अगली किताब के लिए शुभकामनायें और उसकी प्रतीक्षा में..
-अभिनव जैन
(शिक्षक,लेखक)
#लकड़बग्घा #सत्य_व्यास #हिंदीकिताबें
Sujit Bhardwaj –
A Best crime thriller writen by Satya Vyas sir .
Kavish kumar –
What a book I love it
Kiran –
Khani bhot jyda acchi thi… But last me jo suspense h…vo ab tk khaye ja rha h..
Amit –
बहुत बढ़िया उपन्यास!
अंत जैसा सोचा था वैसा नहीं हुआ पर यही तो लेखक की जीत है कि कहानी खत्म होने के बाद भी आप कहानी ही ढूंढते रहो कि आगे क्या उसका क्या हुआ इसका क्या हुआ होगा
Alok Yadav Gaurav –
सबसे पहले सत्य व्यास सर को तहे दिल से आभार,, जो इतने लंबे समय बाद अपनी कोई पुस्तक ले कर आए,, आपकी पुस्तकों का बेसब्री से इंतजार रहता है गुरु!
वैसे तो मीना छोड़ आपकी सभी पुस्तकें पढ़े हैं हम पर बात रही लकड़बग्घा की तो पुस्तक का कवर पेंज बेहद ही अट्रैक्टिव, और लेखक नाम की तो पूछिए मत,, मैने तो केवल सत्य व्यास नाम देख कर ही ऑर्डर कर दिया था। वैसे इस पुस्तक को पढ़ने का अनुभव बेहद ही शानदार रहा किरदार सभी अच्छे थे, पुस्तक शुरू से अंत तक आपको बांधे रखती है। मुझे पर्सनली ऐसा लगा कि, अंत और भी अच्छा किया जा सकता था, अंत में थोड़ी जल्दबाजी मालूम हुआ। गौरव तो चलिए श्वेता के वार से मर गया, अंकुर का क्या..? अचानक से कहां गायब हो गया..? मिला भी या नही..? विक्रांत व इंगले वहां पहुंचे ही नहीं! श्वेता का प्रमोशन मेडल..? मेरे ख्याल से यही सब सवाल हैं मेरे सत्य व्यास सर से,,
नो डाउट सत्य व्यास सर बहुत ही अच्छा लिखते हैं पर इस दफा थोड़ी सी जल्दबाजी नज़र आई हमें लकड़बग्घे में,,
गुरु वैसे तो सारी पुस्तकें आपकी मस्त हैं। सब एक से बढ़कर एक हैं पर चौरासी और 1931 की बात ही कुछ और है, इसे पढ़ लेने के बाद ऐसा लगता है की आप ऐसी ही लेखनी के लिए बने हैं।
बाकी सत्य व्यास सर आपको इस पुस्तक के लिए ढेर सारी शुभकामनाएं हैं। आप सदैव जीवन में अच्छा करिए महादेव से कामना है।
अंत में सहित विमर्श से यही कहूंगा कि महराज पेज़ और अच्छा करिए, ताकि अच्छे नोट को अंडरलाइन करने पे अगले पेज पे न छपे। बाकी सब अच्छा था।
शानदार ! जबरदस्त ! जिंदाबाद ! 👍✌️🙏
ANMOL SRIVASTAVA –
Loved the book….story is interesting as well as beautifully written and sometimes the creepiness is out of the box…..one thing i want to ask i didn’t get the ending of kaala paisa on audible….
कुन्दन कुमार –
एक बैठक में ख़त्म करने वाली किताब है ये । रात के दो बजने को है और मैंने ये किताब अभी ख़त्म की है। क्या गजब का संवाद, शुरू से लेकर अंत तक का सस्पेंस, कई किरदार पे जाती शक की सुई इसे एक अत्यंत ही मज़ेदार किताब बनाते है। सत्य व्यास सर को इस शाहकार के लिए अत्यंत बधाई। आप ऐसे ही हम पाठक वर्ग के लिए लिखते रहे और खूब तरक़्क़ी करे। अंत में आपके ही किताब से आपके लिए एक प्यारा संदेश
* आप वापस आइयेगा ! आप ज़रूर वापस आइयेगा!*
Amit Kumar yadav –
Satya vyas sir ko padhna to hamesa se hi achha lagta hai..mai abhi tak aapke sare kitabo ko padh chuka hoo.aur hamesa se hi intezar rahta hai aapke nay Kitab k aane ka …is bar intezar to jyada hi karna pada ..aasa hai aage ye intezar itna lamba nahi rahega..
“LAKADBAGHHA ” K bare me kya hi bat kare …rahasyo se bhari ek shandar novel hai ye..shuru se lekar last tak ye novel khud. Ko bandhe rakhti hai ..
Aage ki aane wali kitab k liye aapko agrim badhai sir..bhagwan se aapke lambi aur swasth jiban ki kamna karta hoo
वंदना –
अच्छी पुस्तक है,बिल्कुल हट कर लिखा हुआ लास्ट तक सस्पेंस बना रहा मुझे लगता है दुनिया सच मे ऐसे ही चलती है हर किसी के विचारों मे अलग अलग सी।
Anonymous (verified owner) –
Nice Read. A fast pace Crime thriller.
Atul Sharma –
शुरुआत धीमी है। पर जब किलर क्रू के वेश में इंस्पेक्टर श्वेता से मिलता है तो कहानी रफ्तार पकड़ लेती है। रिपोर्टर को भाग कर पकड़ना और छोड़ देना अधूरा सा है। लेकिन श्वेता के घर आकर उसे बेहोश करना रोमांचक लगता है। तोते से बात और दीदी की जगह पेशेंट खुद होना दहशत भर देता है। फादर के सामने चर्च में confession दहला देता है। कातिल के सामने तीन गिनने तक हथौड़ा मारने की गेम रोमांचक बन पड़ी है। आखिर में एस्कॉर्ट हरीश कुमार को हथौड़ा मारती है क्या वो श्वेता ही है? अंकुर का अगले भाग में क्या रोल होगा? अगली कड़ी का इंतजार रहेगा। सत्य व्यास की अच्छी किताबों में इसका शुमार रहेगा।
Nilesh mehra (verified owner) –
Storyline is okk
Lokesh –
सत्य व्यास के सारी किताबें पढ़ी है। बहुत ही एक लेखक हैं ।
Nitin –
Fast paced thriller
Suhail –
Unputdownable Book. A must Read.
Anilkumar (verified owner) –
स्टोरी मे नवीनता है. खास कर पहली बार गौरव इंट्रोड्यूस हुवा तो पाठक अपनी सुझबुझ से समझ जाते है कि यही हथौडी मार है लेकीन लेखक उसी सीन मे पाठको को सही साबित कर चौका देता है.
कहानी अच्छी है लेकीन कंटीन्यूटी मे बहोत सी गलतिया है.
1. जब विघ्नेश की लाश की बाबत इन्स्पेक्टर को खबर मिलती है तो अपने कॉन्स्टेबल को ये कहकर कि वो बेटे को स्कुल छोड के आती है. घर चली जाती है लेकीन बेटे को जगाती तक नही.
2.मृतक का नाम पहले विघ्नेश हेगडे बताया है लेकीन बाद मे हर जगह उसे विघ्नेश शेट्टी कहा गया, जबकि लाश देखने वाली शेट्टी थी, शांता शेट्टी.
३. कॉन्स्टेबल अभी लाश के पास ही है फिर भी ये जान गया कि विघ्नेश के बिजनेस मे क्या झोल था वो क्या इललीगल करता था.
4. लेखक के स्पष्ट न लिखने से ऐसा लगता है जैसे टॅक्सी ड्रायव्हर की कनपटी पर चलती गाडी मे हथौडा मारा गया जो कि एक्सिडेंट का बायस बन सकता था.
५. मराठी मे बहु सास से आदर से बात करती है और सास बहु से तु तकार से लेकीन किताब मे इससे उल्टा लिखा गया है.
6. टॅक्सी ड्रायव्हर को एक जगह दुबला पतला तो एक जगह मजबुत शरीर वाला बताया गया है.
७. जब विघ्नेश की लाश काफी देर बारीश मे भिगती रही तो उसकी उपरी जेब मे रखा बिजनेस कार्ड उस हालत मे नही होता जीससे इन्स्पेक्टर इतनी बडी लीड पाती
8. इन्स्पेक्टर मोर्चरी मे क्या करने गयी थी वो स्पष्ट न हो सका क्योंकी उसे वहा कुछ भी न करते दिखाया गया है.
९. गौरव इन्स्पेक्टर के सर मे प्लास्टिक बैग पहनाकर उसे उल्टा लटकाता है तो जाहीर है उसकी जुल्फे बैग के भीतर थी फिर भी उन्हे फर्श से छुता बताया है.
और भी है लेकिन लिखना जादा हो जायेगा. अच्छी कहानी लिखी है लेकीन लेखक को और सजग रहना होगा.
कहानी का अंत थ्रिलर है लेकीन समझ से परे है. घर मे प्रवेश का एक ही दरवाजा है सीढियो मे वो खुद खडी है तो व्हील चेयर समेत उसका बेटा कैसे गायब हो गया ? फील्मस्टार के मरने की प्रत्यक्ष वजह क्या थी? ये प्रश्न अनुत्तरीत रह जाते है. क्या इसका कोई पार्ट भी आयेगा?