
साहित्य विमर्श प्रकाशन
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ऑनलाइन फ़्लर्टिंग ऑफ़्लाइन जीवन में कैसी कैसी गुलाटियाँ खिला सकती है इसका छोटा सा सर्कस है ये किताब-सँभल ऐ दिल।
सुधा ने मधु की तरफ़ पैनी निग़ाहों से देखते हुए कहा- “मैं उस लड़की से मिलना चाहती थी, जो समीर की ज़िंदगी में मेरी जगह लेना चाहती है।”
मधु ने बेबाक़ी से कहा- “प्यार तो प्यार होता है। शादी से पहले हो या शादी के बाद। प्यार तो एक एहसास है उसे नियम नहीं बाँध सकते। नियम इंसान के क्रियाकलाप को बांधने के लिए होते हैं। तुमने शादी के नियम का इस्तेमाल करके समीर के तन को बाँध लिया, पर महसूस करने से रोकना समाज के किसी नियम के बस में नहीं। प्यार करती हो ना समीर से? ख़ुश देखना चाहती हो ना उसको? मेरी वजह से वो ख़ुश रहता है सुधा। बी थैंकफुल। इंस्टेड ऑफ़ एट्टीट्यूड शो सम ग्रैटीट्यूड।”
समीर को नफ़रत हो रही है सुधा इस दोगलेपन से। एक तरफ कहती है प्यार करती है मुझसे और दूसरी तरफ मेरी ख़ुशी देखी नहीं जाती इससे।
क्या समीर सुधा के पास लौटेगा? बिंदास और बेबाक़ मधु के आकर्षण से बाहर आ पाएगा? जवाब जानने के लिए प्रतीक्षा कीजिए साहित्य विमर्श के अगले सेट की
Weight | 300 g |
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Dimensions | 22 × 17 × 3 cm |
फॉर्मैट | पेपरबैक |
भाषा | हिंदी |
Number of Pages | 304 |
Abhishek Singh Rajawat –
भारतीय समाज में विवाह एक ऐसा कदम है जो सिर्फ दो लोगों को नहीं बल्कि दो परिवारों को साथ में जोड़ता है, इसी वजह से एक बड़ी जिम्मेदारी भी पति पत्नी को साथ में मिलती है, जहाँ उन्हें अपने संसार के अलावा भी खुद से जुड़े हुए लोगों को भी समय देना पडता है, किन्तु इसका असर उनके वैवाहिक जीवन पर नहीं पड़ना चाहिए, हेमा जी ने शादी के बाद के जीवन को लेकर एक रोचक कहानी लिखी है, जो अपने अंदर एक दो नहीं बल्कि कई सीख लिए हुए है, अब ये पढने वाले के विवेक पर निर्भर करेगा कि वो उससे कितना सीख पाता है…