शब्दगाथा
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भारत की साहित्यिक परंपरा में हॉरर और अलौकिक कहानियों का एक विशेष स्थान रहा है। पुरानी लोककथाओं, पौराणिक कथाओं और धार्मिक ग्रंथों में ऐसे अनेक पात्र और घटनायें मिलती हैं, जो आज भी लोगों के मन में डर और रहस्य का संचार करती हैं। समकालीन लेखन में भारतीय लेखक इस विधा को नई ऊँचाइयों पर ले जा रहे हैं, जिसमें भूत-प्रेत, आत्मायें और अदृश्य शक्तियाँ मुख्य भूमिकायें निभा रही हैं। इन कहानियों में समाज के विभिन्न पहलुओं को दर्शाते हुए, अक्सर इंसानी भावनाओं और मान्यताओं के साथ अलौकिक तत्वों को जोड़ा जाता है, जो पाठकों को अपनी ओर खींच लेता है। कभी-कभी, जाने-अनजाने कुछ ऐसा घटित हो जाता है, जो मृत्यु के बाद भी इंसान को मुक्त नहीं होने देता। यह प्रेम भी हो सकता है, ज़िम्मेदारी भी हो सकती है, बदला भी हो सकता है, लालच भी हो सकता है, या फिर कोई अधूरापन भी। कारण चाहे जो भी हो, परंतु यह इतना शक्तिशाली होता है कि मृत व्यक्ति को भी इस दुनिया से बांधे रखता है। ऐसा ही कुछ हुआ था उस रात, जब एक आत्मा अपनी अधूरी इच्छाओं और गहरी पीड़ा के कारण इस दुनिया में ही रुक गई थी। उसकी उपस्थिति ने हौलनाक हत्याओं के सिलसिले को जन्म दिया। जो भी उस अदृश्य शक्ति को रोकने की कोशिश करता, वही मारा जाता। आलोक सिंह खालौरी की यह कहानी है दृश्य और अदृश्य के बीच हुई एक भयावह जंग की। यह कहानी है अधूरा की, जिसमें एक आत्मा अपनी अधूरी इच्छाओं के साथ इस दुनिया में आतंक का पर्याय बन गई थी।
आलोक सिंह खालौरी मूलतः बुलंदशहर के ग्राम खालौर के निवासी हैं। वह पेशे से वकील हैं।
मेरठ में ही उन्होंने वकालत की पढ़ाई पूरी कर प्रेक्टिस शरू कर दी थी।
उनका पहला उपन्यास राजमुनि था जो कि परलौकिक रोमांचकथा थी।
Weight | 275 g |
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Dimensions | 22 × 14 × 2 cm |
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