उसका प्यार उसके सामने था। ना परिवार, ना समाज, कोई भी उनके विरोध में नहीं था, लेकिन फिर भी उसका प्रेम पूर्णता को प्राप्त नहीं हो सकता था; क्योंकि जिस क्षण वो अपने प्रेम को पाने का प्रयत्न करती, उसी क्षण उसकी मृत्यु निश्चित थी। उसकी भी और जिससे उसे प्यार था उसकी भी। यही तो होता आ रहा था उसके साथ कई जन्मों से। और इस रहस्य की कुंजी कहीं दूर अतीत में छुपी हुई थी।
अब यदि उसे अपने प्रेम को पाना था, तो उसे अतीत में जाकर इस रहस्य को सुलझाना ही था।
आधुनिक काल से साढ़े आठ सौ वर्ष पहले तक फैली एक भावनात्मक रोमांच गाथा।
सत्य व्यास: अस्सी के दशक में बूढ़े हुए। नब्बे के दशक में जवान। इक्कीसवीं सदी के पहले दशक में बचपना गुजरा और कहते हैं कि नई सदी के दूसरे दशक में पैदा हुए हैं। अब जब पैदा ही हुए हैं तो खूब उत्पात मचा रहे हैं।
चाहते हैं कि उन्हें कॉस्मोपॉलिटन कहा जाए। हालाँकि देश से बाहर बस भूटान गए हैं। पूछने पर बता नहीं पाते कि कहाँ के हैं। उत्तर प्रदेश से जड़ें जुड़ी हैं। २० साल तक जब खुद को बिहारी कहने का सुख लिया तो अचानक ही बताया गया कि अब तुम झारखंडी हो। उसमें भी खुश हैं।
खुद जियो औरों को भी जीने दो के धर्म में विश्वास करते हैं और एक साथ कई-कई चीजें लिखते हैं। अंतर्मुखी हैं इसलिए फोन की जगह ईमेल पर ज्यादा मिलते हैं।
ब्लॉगिंग, कविता और फिल्मों के रुचि रखने वाले सत्य व्यास फ़िलहाल दो फिल्मों की पटकथा लिख रहे हैं। पहले चारों उपन्यास बनारस टॉकीज, दिल्ली दरबार, चौरासी और बाग़ी बलिया ‘दैनिक जागरण-नीलशन बेस्टसेलर’ की सूची में शामिल रहे हैं। तीसरे उपन्यास चौरासी पर ग्रहण के नाम से वेब सीरीज भी बनी। 1931 -देश या प्रेम के बाद लकड़बग्घा इनका सातवाँ उपन्यास है। ईमेल : authorsatya@gmail.com
Harsh Gautam (verified owner) –
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