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पराग डिमरी, वर्तमान में गाजियाबाद वासी।स्मृतियों में अभी भी बचपन के उत्तराखंड प्रदेश के छोटे से शहर कोटद्वार में ही अपनी जड़ों को महसूस करते हैं।जीविका के लिए दिल्ली स्थित एक निजी संस्थान में विपणन और व्यवसाय वृद्धि विभाग में कार्यरत।रोजगार के निर्वहन के अतिरिक्त काफी पढ़ना, कभी लिखना और मधुर संगीत को सुनना, बस इसके इर्द-गिर्द ही जीवन को सीमित कर रखा है। इस पुस्तक के लिए भी एक फिल्मी गीत की पंक्ति को उद्धृत करते रहते हैं:-…कोई अपनी पलकों पर यादों के दिए रखता है…