84 को पढने के बाद लेखक से मुझे जो भी शिकायत हुयी थी, बागिओ बलिया ने उसकी भरपाई कर दी, कहानी में इतनी स्पीड कि आप एक बार पढ़ना शूरू करें तो खत्म, करके ही रुकें
Baghi Baliya | बाग़ी बलिया – संजय को स्टूडेंट यूनियन का इलेक्शन जीतना है और रफ़ीक़ को उज़्मा का दिल। झुन्नू भइया के आशीर्वाद बिना कोई प्रत्याशी पिछले दस सालों से चुनाव नहीं जीता और झुन्नू भइया का आशीर्वाद संजय के साथ नहीं है। शहर की खोजी निगाहों के बीच ही रफ़ीक़ को उज़्मा से मिलना है और शहर प्रेमियों पर मेहरबान नहीं है। डॉक साब कौन हैं जो कहते हैं कि संजय मरहट्टा है और इस मरहट्टे का जन्म राज करने को नहीं राजनीति करने को हुआ है? शहर बलिया, जो देने पर आए तो तीनों लोक दान कर देता है और लेने पर उतारू हो तो… हँसते-हँसते रो देना चाहते हों तो पढ़ें—बाग़ी बलिया…
Abhishek Singh Rajawat –
84 को पढने के बाद लेखक से मुझे जो भी शिकायत हुयी थी, बागिओ बलिया ने उसकी भरपाई कर दी, कहानी में इतनी स्पीड कि आप एक बार पढ़ना शूरू करें तो खत्म, करके ही रुकें