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चाँदपुर की चंदा – Chandpur Ki Chanda – कुछ साल पहले पिंकी और मंटू का प्रेम-पत्र सोशल मीडिया पर वायरल हुआ और ऐसे वायरल हुआ कि उसे शेयर करने वालों में हाईस्कूल-इंटरमीडिएट के छात्र भी थे और यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर भी। लेकिन उस छोटे से प्रेम-पत्र के पीछे की बड़ी कहानी क्या थी, यह किसी को नहीं मालूम। क्या था उन दो प्रेमियों का संघर्ष? चाँदपुर की चंदा क्या उस मंटू और पिंकी की रोमांटिक प्रेम-कहानी भर है? नहीं, यह उपन्यास बस एक खूबसूरत, मर्मस्पर्शी वायरल प्रेम-कहानी भर नहीं है, बल्कि यह हमारे समय और हमारे समाज के कई कड़वे सवालों से टकराते हुए, हमारी ग्रामीण संस्कृति की विलुप्त होती वो झाँकी है, जो पन्ने-दर-पन्ने एक ऐसे महावृत्तांत का रूप धारण कर लेती है जिसमें हम डूबते चले जाते हैं और हँसते, गाते, रोते और मुस्कुराते हुए महसूस करते हैं। यह कहानी न सिर्फ़ हमारे अपने गाँव, गली और मोहल्ले की है, बल्कि यह कहानी हमारे समय और समाज की सबसे जरूरी कहानी भी है।
Weight | 210 g |
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Dimensions | 19.8 × 1.6 × 12.9 cm |
Arpana Kumari –
A master piece. A wonderful book describing the scenario of village life very perfectly.
The irony, wit and humour is very very subtle and soothing.
pkpandey723 –
#चाँदपुर_की_चंदा
बहुत उम्दा भाई Atul Kumar Rai जी…👌
चाँदपुर की चंदा के मुख्य किरदार पिंकी और उसका लव मंटू हैं।
डॉक. सुखारी, कवि चिंगारी जी, फूँकन मिस्त्री, फजूल बैंड पार्टी, बित्तन ए टू जेड, डब्लू नेता, झांझा बाबा, खेदन की चाय दुकान और मंटू के दोस्त और समस्त चाँदपुर के ग्रामवासियों को लेकर लिखे गए इस उपन्यास में अथाह प्रेम, दुःख-दर्द, हँसी मज़ाक, व्यंग, राजनीति, स्वास्थ्य, शिक्षा व्यवस्था के बारे में बहुत सुंदर लिखा गया है।
कई दिनों में पूरी हुई, लेकिन पूरी होते-होते रुला दिया गुड़िया और रमावती की मौत ने और फिर चाँदपुर की चंदा की विदाई के साथ हुई हैप्पी इंडिंग…
इससे आगे 287 पेज की इस क़िताब का बस एक पन्ना अपनी वाल पर उतार रहा हूं। पढ़ें जरूर….
घड़ी सुबह के सात बजा रही है। घने कोहरे में सिमटकर बलिया रेलवे स्टेशन सफेद पड़ गया है। अचानक सूचना प्रसारण यंत्र में किसी ने जोर से फूंक मारी- ‘यात्रीगण कृपया ध्यान दें, जयनगर से चलकर नई दिल्ली को जाने वाली स्वतंत्रता सेनानी एक्सप्रेस प्लेटफार्म नंबर दो पर आ रही है।’
गाड़ी खड़े होते ही जनरल बोगी से लड़खड़ाते हुए पाँच अधेड़नुमा युवक उतर रहे हैं। पाँचों की उम्र 25 से 30 के बीच है। सबके हाथों में झोले और पैरों में गोल्डस्टार के जूते हैं। मुंह से गुटखा टपक रहा है और आंखों तक लटकती जुल्फों से रूसी झड़कर जैकेट पर गिर रही है। पाँचों को गौर से देखने पर यकीन हो जाता है कि इस देश मे सिर्फ ठंड ही नहीं बल्कि बेरोजगारी और महँगाई भी काफी बढ़ गई है और सरकार को सबसे पहले ‘युवा कल्याण मंत्रालय’ और ‘मद्य निषेध मंत्रालय’ को एक में मिला देना चाहिए,क्योंकि जिस दिन ठीक से ‘मद्य निषेध’ हो गया उस दिन ‘युवा कल्याण’ अपने आप हो जाएगा।
चाँदपुर! सरयू किनारे बसा बलिया जिले का आखिरी गाँव! कहते हैं चाँद पर पानी है कि नहीं यह तो शोध का विषय है लेकिन चाँदपुर की किस्मत में पानी ही पानी है। चाँदपुर चलता है पानी में, जीता है पानी में और टूटता भी है पानी में!
इस गाँव में अधिकतर लोग किसान हैं, कुछ फौजी जवान, करीब चार मास्टर, दो क्लर्क, चार बुद्धिजीवी, तीन क्रांतिकारी, दो प्रेमी, एक कवि और अनगिनत नेता हैं।
गाँव में प्रवेश करते ही सड़क टूटना शुरू हो जाती है। सड़क में अपने-आप पैदा हो गए गड्ढे भारतीय भ्रष्टाचार की गहराई का अलंकारिक वर्णन करते हुए ये बताते हैं कि इस देश में ड्राइविंग लाइसेंस लेने से आसान ठेकेदारी का लाइसेंस लेना और खैनी बनाने से आसान सड़क बनाना है।
लगभग सौ मीटर इसी अंदाज में सीधे चलने के बाद नवीन विद्युतीकरण का शंखनाद करता एक खंभा दिखता है। खंभे पर क्षेत्र के छोटे-बड़े, नाटे, मझोले नेताओं के पोस्टर जोंक की तरह चिपके हैं। एक मिनट बिजली के खंभे और दूसरी मिनट इन पोस्टरों को देखने के बाद यकीन हो जाता है कि खंभे के तार में बिजली दौड़े या न दौड़े गाँव की रगों में राजनीति की बिजली बड़ी तेजी से दौड़ रही है और विद्युत ऊर्जा पैदा करने में भले हम फिसड्डी हों लेकिन राजनीतिक ऊर्जा पैदा करने में हम अभी भी पहले स्थान पर हैं।
बस इसी रास्ते पर थोड़ा-सा आगे चलने पर बाढ़ नियंत्रण बोर्ड का कार्यालय और डाकबंगला पड़ता है। जिसके कैंपस में उग आए आवारा घासों और बेहया के पौधों ने बाढ़ विभाग के साथ-साथ वन विभाग से भी अपना संबंध स्थापित कर लिया है, और बगल में जंग खा रहे पीपा के पुलों, डूबते पत्थरों और बालू की बोरियों के साथ मिलकर ये ऐलान कर दिया है कि चाँदपुर में बाढ़ छोड़कर सब कुछ नियंत्रण में रहता था, रहता है और आगे भी रहता रहेगा।
अब शिक्षा – दीक्षा की बात करें तो गाँव में एक संस्कृत पाठशाला है। जिसका संस्कृत से वैसा ही सम्बंध है जैसा राजनीति का नैतिकता और नेता का ईमानदारी से होता है।
यहाँ एक प्राइमरी और एक मिडिल स्कूल भी बना है। जिसकी दीवारों पर गिनती, पहाड़ा के अलावा ‘सब पढ़ें-सब बढ़ें’ का बोर्ड लिखा तो है, लेकिन कभी-कभी बच्चों से ज्यादा अध्यापक आ जाते हैं, तो कभी समन्वय और सामंजस्य जैसे शब्दों की बेइज्जती करते हुए एक ही मास्टर साहेब स्कूल के सभी बच्चों को पढ़ा देते हैं।
स्कूल के ठीक आगे पंचायत भवन है, जिसके दरवाजे में लटक रहे ताले की किस्मत और चाँदपुर की किस्मत में कभी खुलना नहीं लिखा है। मालूम नहीं कब ग्राम सभा की आखिरी बैठक हुई थी लेकिन पंचायत घर के बरामदे में साँड, गाय, बैल खेत चरने के बाद सुस्ताते हुए मुड़ी हिला-हिलाकर गहन पंचायत करते रहते हैं और कुछ देर बाद पंचायत भवन में ही नहीं गांव की किस्मत पर गोबर करके चले जाते हैं।
हाँ गाँव के उत्तर एक निर्माणाधीन अस्पताल भी है। जो लगभग 2 साल से बीमार पड़ा है। उसकी दीवारों का कुल जमा इतना प्रयोग है कि उस पर गाँव की महिलाओं द्वारा गोबर आसानी से पाथा जा सकता है। साथ ही गाँव के दिलजले लौंडो द्वारा खजुराहो, कोणार्क, वात्स्यायन और पिकासो को मात देती हुई कुछ अद्भुत कलाकृतियाँ बनाकर कला जगत के सम्मुख नई चुनौती उत्पन्न की जा सकती है।
‘इश्क की पढ़ाई तो हमने ए टू जेड किया
हाय!हमने क्यों नही बीएड किया।’ (दिलजले कवि चिंगारी जी कि कलम से… 😍
Ranjeet yadav –
Janjha baba na hote to kya hota mantu aur pinki ka bhai rula dene wali story 260 page padne ke baad dil toot hi gaya tha ab kya hoga lekin baad me story ne dil khush kar diya love this story
राजेंद्र प्रसाद –
वर्तमान समाज में युवा वर्ग को जागरूक करने की बेहतरीन पुस्तक कहानी के रूप में उपस्थित है। बहुत ही सुंदर हास्य व्यंग्य मजेदार ग्रामीण से ग्रामीण शब्दों का प्रयोग और एक हृदय के प्रेम की स्पर्श भावना तथा दिल को छूने वाली कहानी है बहुत ही पसंद है हमें भी , एवं सभी हिंदी प्रेमियों को।भी पसंद है
बहुत-बहुत धन्यवाद