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Karta Ne Karm Se । कर्ता ने कर्म से – हम जितने होते हैं वो हमें हमसे कहीं ज़्यादा दिखाती है। कभी एक गुथे पड़े जीवन को कलात्मक कर देती है तो कभी उसके कारण हमें डामर की सड़क के नीचे पगडंडियों का धड़कना सुनाई देने लगता है। वह कविता ही है जो छल को जीवन में पिरोती है और हमें पहली बार अपने ही भीतर बैठा वह व्यक्ति नज़र आता है जो समय और जगह से परे, किसी समानांतर चले आ रहे संसार का हिस्सा है। कविता वो पुल बन जाती है जिसमें हम बहुत आराम से दोनों संसार में विचरण करने लगते हैं। हमें अपनी ही दृष्टि पर यक़ीन नहीं होता, हम अपने ही नीरस संसार को अब इतने अलग और सूक्ष्म तरीक़े से देखने लगते हैं कि हर बात हमारा मनोरंजन करती नज़र आने लगती है। —मानव कौल (कर्ता ने कर्म से)
Sarthak Arora –
आइन्दा से डिटेलिंग थोड़ी कम करना
sahilloving87 –
बहुत ही दिलचस्प ,,,पहला नावेल है जिससे मैं व्यक्तिगत तौर पर रेलेट कर पाया क्यूंकि मैं भी दिल्ली के उसी एरिया में रहता हूँ जहा पर ये सारी कहानी चलती है बहुत ही मज़ा आया और उम्मीद है की आप आगे इससे भी मज़ेदार कंटेंट देंगे।
Jai singh –
पढ़ने लायक बढ़िया रचना