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एक स्त्री जब कविता लिखती है, तो वह मन की कविताएं लिखती है। मन की कविताएं, जहां उत्साह होता है, उमंग होती है और होती है, संप्रेषणीयता। ऐसी संप्रेषण जो अनायास सुनने वालों को, पढ़ने वालों को उस दुनिया में ले जाता है, जहां पर वह कविता संवेदना के साथ ठहरी हुई होती है, पाठको को बुलाती हुई। कंचन भारद्वाज की कविताएं ऐसी ही कविताएं हैं, जो दुनिया की बातें करती हुई इन बातों के बीच से ही दुनियादारी की बातें भी समझा जाती हैं।
कविताओं में भी वे साहस को कहीं पीछे नहीं छूटने देतीं। स्त्री के नजरिए से बसंत को पढ़ना अद्भुत अनुभव देता है। बोलते हुए शब्दों का वसंत और कोरे कागज को कविता का प्रयोग बताता है कि कंचन की कविताओं में कल्पना का अतिरेक नहीं बल्कि उस आशय को पकड़ने की एकदम सटीक कोशिश है, जिसके लिए वह अतिरिक्त मेहनत भी नहीं करतीं।
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