तीन हमनाम, हमपेशा प्रगाढ़ मित्र जो मिल कर एक क्लब चलाते हैं, क्लब में एक लाइव हॉरर शो का आयोजन करते हैं, जिसके दौरान वो जाने अनजाने एक नकारात्मक शक्ति का आह्वान कर बैठते हैं और चौदह सौ साल से सोए काल के पृथ्वी पर आगमन का द्वार खोल देते हैं। काल जो शैतान का प्रधान सेवक है, शैतान की तरफ से ईश्वर की सत्ता के विरुद्ध युद्ध छेड़ देता है। और फिर होती है ऐसी तबाही, जो अकल्पनीय होती है, मुर्दे कब्रों से उठकर खड़े हो जाते हैं, ईश्वर के भक्त ईश्वर की भक्ति छोड़ काल के गुलाम बन जाते हैं। काल जिसकी सत्ता का एकमात्र सूत्र था ताकतवर लोग उसकी दासता स्वीकारें और समाज के कमजोर लाचार लोगो का सफाया कर दें, जिससे एक बेहद ताकतवर समाज का गठन हो जो उसके राज को सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में स्थापित करने में अहम् भूमिका निभाए। सब कुछ काल के पक्ष में था, बस इस बात को छोड़कर कि जब से इस ब्रह्माण्ड की रचना हुई है, कभी भी बुराई अच्छाई से जीत नहीं पाई है। तो क्या इस बार भी?…………पर कैसे?
आलोक सिंह खालौरी मूलतः बुलंदशहर के ग्राम खालौर के निवासी हैं। वह पेशे से वकील हैं। उनके पिताजी के न्यायिक अधिकारी होने के चलते उनका बचपन अलग-अलग शहरों में बीता था। उरई से शुरू होकर रुड़की,सीतापुर, गोरखपुर, गोंडा, आगरा, बदायूं और मेरठ में उनकी शिक्षा दीक्षा सम्पन्न हुई। मेरठ में ही उन्होंने वकालत की पढ़ाई पूरी कर प्रेक्टिस शरू कर दी थी। उनका पहला उपन्यास राजमुनि था जो कि परलौकिक रोमांचकथा थी।
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