Stri Bhasha Stri Katha- स्त्री अपने जीवन के अनुभवों से गुजरते हुए समाज के पक्षपातपूर्ण रवैये को पहचानती है। मध्यवर्गीय समाज की सुशील लड़की के ‘सपने’, उसकी अपनी भाषा में कल्पना बनकर भी बहुत मुश्किल से पूर्ण स्वरूप ले पाते हैं। नैतिकता का संस्कार बोध उसे परिवार की सर्वोपरि संस्कारी इच्छाओं की सीमा में कैद कर देता है। यही एकमात्र कारण, शिक्षा के प्रसार के बावजूद स्त्रियों की अस्मिता/पहचान की तलाश में बाधा बनता है, किन्तु संस्कारित, सभ्य, ‘सुशील’ लड़कियाँ इसे अपनी नियति मानकर स्वयं को गौरवान्वित करती हैं। भारतीय समाज के मध्यवर्गीय परिवार के ऐसे ही परिवेश से मेरा आमना-सामना रहा है। शिक्षा के दौरान साहित्य के क्षेत्र में गढ़ी गई जो स्त्रियाँ/नायिकाएँ मिलीं, वह भी अबला दुःखी, शोषित ही अधिक मिलीं या फिर पश्चिमी फेमिनिज्म की तेज हवा में देह-मुक्ति तलाशती, एकाकी जीवन जीती स्त्रियाँ मिलीं। ये दोनों ही तरह की स्त्रियाँ मुझे अपने आस-पास की स्त्रियों से कभी मेल खाती लगतीं तो कभी बिल्कुल ही अलग लगती रहीं। आखिर स्त्री भी कभी न कभी तो अपने तरीके से प्रत्यक्ष या परोक्ष रास्ता अपने जीने के लिए अवश्य तलाश ही लेती है।
(इसी पुस्तक से )
Weight | 250 g |
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Dimensions | 22 × 14 × 2 cm |
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